SAPTARISHI MANDAL

According to the Puranas,the Saptarishis were ardent disciples and followers of Lord Vishwanath. Such were their bakthi towards the lord that even in times of distress and difficulties God was always with them.

During this period, Prajapati Daksha had arranged for a grand Yajna(ritual sacrifice).He had invited all the members of his family, allies, gods, sages, courtiers and subjects: excluding lord Shiva and mother Sati. Sati told  Lord Viswanath “ My father has organized the Yajna, we should attend the yajna”. Lord Vishwanath tried to dissuade Sati, he said, “Your father hasnot invited us to the yajna, so it would be in the best interest not to attend the yajna”. Sati was resolved to go, after much persuasion Lord Viswanath granted her permission , with Nandi as her escort. At the Yajna Sati was hurt by the insult meted out to her and her husband. Sati was devastated and in disgust and anger she jumped into the fire of the Yajna.

Nandi reported back to Lord Viswanath the events that had occurred. Lord Shiva was livid with rage and he took to Rudra form and fiercely tore his hair out and from this hair the fiercest warrior Virabhadhra was born. Lord Vishwanath commanded Virabhadra to go to the yajna and destroy the yajana, the guests and to cut of daksha’s head and to offer it as sacrifice into the yajna mandap. Lord Vishwanath then carried the lifeless body of Sati in a remorseful state and began roaming the earth. Lord Vishnu, then intervened  and he cut Sati’s body into 51 pieces which fell on earth at various places, these 51 places are called Shakthi Peethas and mother Sati’s eyes had fallen at Kasi, and is known as Visalakshi.

After this incident Lord Viswanath went into long deep meditation for some eons. The gods and goddess ,gandharvas, kinar tried to break Lord Vishwanath’s penance, but in vain. They then sent Kamdev and his wife Rati to try and break the penance. Kamdev used his Pushpak arrow and the lord Vishwanath meditation was disturbed but Shiva was so angered by this that he opened his third eye and burnt Kamadev to ashes .He went back again to his penance. The gods and goddesses then sought the help of the Saptarishis,”please try and find a solution to please lord Vishwanath”. The Saptarishi mandal with the help of the Samaveda letters formed the Shiva Stuthi. Lord Vishwanath penance ended, he was extremely happy with the Saptarishis. He granted them wishes; the Saptarishis wished that Lord Vishwanath marry goddess Parvathy for the good of the Universe. Lord Vishwanath accepted this wish.

From this day on Saptarishi pooja is held at Kasi Vishwanath Temple. This arthi takes place during the evenings when the Saptarishi mandal appears in the sky, that is when the saptarishi arthi reaches its completion. During summer months the Saptarishi mandal makes their appearance in the sky at 7:30 p.m.; during winter at 7p.m. This is when the arthi is completed.

The Kasi Vishwanath Temple was destroyed by Aurangzeb, but this did not stop the Saptarishi arthi from taking place. The Saptarishi pooja was continued at the AtmaVisweshwar Temple for 100 years. Later the temple was restored at Kasi and the arthi is again being performed here.

  1. Rishi Vishwamitra
  2. Rishi Jamdagni
  3. Rishi Bhardwaj
  4. Rishi Gautam
  5. Rishi Atri
  6. Rishi Vashisth
  7. Rishi Kashyap

सप्तऋषी मंण्डल

कालान्तर मे सप्तऋषी भगवान विश्वनाथ के अन्नय भक्त और भगवान विश्वनाथ के शिष्य भी थे , बहुत कठिन परिस्थिथियो मे  भी भगवान उनका साथ नही छोडा| कालान्तर मे दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का निर्णय लिया जिसमे सभी देवी देवता को आमंत्रित किया गया| भगवान विश्वनाथ, माता-सती को आमंत्रित नहीं किया गया, माता-सती भगवान विश्वनाथ से बोली हमारे पिता यज्ञ कर रहे है, हमको और आपको उस यज्ञ मे सम्मिलित होना चाहिए, भगवान बोले : सती तुम्हारे पिताजी ने हम लोगो को आमंत्रण नहीं बेजा हैइसलिए  हम लोग को उस यज्ञ मे सम्मिलित होना उचित नहीं है |”  माता-सती के बहुत आग्रह करने पर भगवान उनको नन्दी के सा॑थ जाने की अनुमति प्रदान की , यज्ञ मंडप में पहुँच कर उन्हो॑ने अपना और भगवान का अनादर देख बहुत क्रोध मे होकर अपने आपको यज्ञ मंडप मे समर्पित कर दिया| नन्दी वहाँ से जाकर भगवान को बतायेभगवान विश्वनाथ रुद्र रुप धारन कर क्रोध से अपने जटा को पटके उससे वीरभ्रद्र  कि उत्पत्ति हुई|

वीरभ्रद्र को उन्होंने आदेश दिया,  “ दक्ष प्रजापति का यज्ञ विध्वंश कर दो तथा दक्ष का शीश काट कर उस यज्ञ कुन्ड मे हवन कर दो|”  भगवान, सती के शव को लेकर विक्षिप्त अवस्था में ब्र्ह्माण्ड में धुमने लगे, फिर विष्णु भगवान ने माता-सती के शरीर को एक्यावन टुकड़ों में विभाजित कियाजिन टुकड़ों का एक्यावन शक्ति पीठ बना| काशी  मे माता-सती का नेत्र गिरा है जो यहँ विशालाक्षी के नाम से जाना जाता है|

 उसके बाद भगवान विश्वनाथ समाधिस्त हो गये| कई हजार वर्षो तक वह समाधिस्त थे| सारे देवी, देवता गान्दर्व, किनर सभी गये लेकिन भगवान के समाधि को भंग नहीं कर सकेसभी भगवान से मिलकर कामदेव और उनकी पत्नी रति को भगवान की समाधि भंग करने के लिये भेजा, कामदेव ने पुष्पक बाण छोडा जिस्से भगवान का समाधि टूटालेकिन तीसरे नेत्र की अग्नि वर्षा से कामदेव वहीँ भस्म हो गये| भगवान पुन: समाधि में लीन हो गये| कुछ् समय बाद सभी देवतागण सप्तऋषी से आग्रह करके भगवान विश्वनाथ को प्रसन्न करने के लिये कोइ उपाय या कोइ रस्ता निकाले | सप्तऋषी मंण्डल भगवान को प्रसन्न करने के लिये सामवेद पत्रो॔ से भागवान की स्तुति की, भगवान की समाधि टूटी, भगवान अति प्रसन्न हुए| भगवान ने सप्तऋषी से वर मां‍गने को कहा सप्तऋषीयों ने भगवान से बोले संसार के कल्याण के लिये हिमालय राज की पुत्री माता पार्वती से आप विवाह करें| भगवान प्रसन्न हुए तभी से सप्तऋषी प्रर्थना बाबा विश्वनाथ के मंदिर में सायंकाल जब सप्तऋषी मंडल आकाश मे उपस्थित  होते है, तभी यह आरती सम्पन्न होती है| गर्मी के महीने में सप्तऋषि मंडल साढ़े  सात बजे उपस्थित होते है और जाड़े के महीने में सात बजे उपस्थित होते है तभी यह आरती संपन्न होती है|

औरंगजेब के समय में काशी विश्वनाथ के मंदिर को तोडा गया तब भी सप्तऋषी की आरती बन्द नहीं हुई | यह आरती आत्माविशेश्वर मंदिर में सौ वर्षो तक होती रही| पुन: बाबा विश्वनाथ के मंदिर स्थापित हुआ तब से यह आरती आत्माविशेश्वर मंदिर से पुन: काशी विश्वनाथ में सम्पन्न हो रहा है|

  1. ऋषी विश्वामित्र्
  2. ऋषी जमद्ग्नि
  3. ऋषी भारद्वाज
  4. ऋषी गौतम
  5. ऋषी अत्रि
  6. ऋषी वशिष्ट
  7. ऋषी काशयप